प्रौद्योगिकी के इस युग में दुनिया तेजी से बदल रही है। डिजिटलाइजेशन की प्रक्रिया चरम पर है और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। मनुष्य के जीवन स्तर को और बेहतर बनाने में इन उपकरणों की महत्ती भूमिका है लेकिन इससे एक चुनौती भी उभरकर सामने आती है, वो है पुराने हो चुके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उचित निपटान की।
भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक देश है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ई-कचरे को रिसायकल करने वाली केवल 16 कंपनियां ही रजिस्टर्ड है। जो देश में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे का मात्र 10 प्रतिशत ही रिसायकल करने की क्षमता रखती है। ऐसे में भारत के संदर्भ में यह चिंता और भी गहरी है।
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने में मुख्य रूप से लोहा, सीसा, ताँबा, पारा सहित कई तरह की धातुओं, रबर, काँच आदि के अलावा प्लास्टिक का उपयोग भी कई रूपों में किया जाता है। बहुत सारी धातुओं और प्लास्टिक इत्यादि के मिश्रण से बने होने के कारण इनका प्राकृतिक रूप से विघटन हो पाना सम्भव नहीं है। अधिकतर यह देखा जाता है कि इन उपकरणों को सीधे ही घरेलू कचरे के साथ ही फेंक दिया जाता है, जिससे इनका उचित निपटान नहीं हो पाता है। इन्हें जहाँ फेंका जाता है वहाँ के वातावरण (जमीन, नदी, झील, समुद्र इत्यादि) को प्रदूषित करते हैं। इसलिए इनको रिसायकल करना बहुत जरूरी हो जाता है। दुनियाभर में बहुत सारे संगठन और संस्थाएँ ई-कचरे से पुनः उपयोगी वस्तुएँ बनाने और उसे नवीनीकृत(रिसायकल) करने में सहायता करती है और इसके लिए जागरूकता फैलाने का काम कर रही है।
दक्षिणी दिल्ली में स्थित एक गांव पिलंजी में कबाड़ी का काम करने वाले बहुत से लोग रहते हैं और यहाँ उनकी दुकानें भी है। यहाँ आसपास के इलाकों से इकट्ठा हुए ई-कचरे को लाया जाता है। उन उपकरणों को तोड़कर उनसे धातुओं, प्लास्टिक और अन्य चीजों को यहाँ अलग किया जाता है। यहाँ से इन्हें बाहर भेजा जाता है जहाँ इनको गलाकर पुनः उपयोगी बनाया जाता है। गांव में ऐसी ही एक दुकान पर काम करने वाले मजदूरों से ज्ञात हुआ कि इस काम में भी बहुत मुनाफा है। बड़े दुकानदार घरों से कबाड़ इकट्ठा करने वालों से बहुत सस्ती दर पर इसे खरीदते हैं और उससे धातु और प्लास्टिक इत्यादि को अलग करके ज्यादा दामों में बेचा जाता है।
अनुपयोगी हो चुके बहुत से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के कुछ हिस्से काम करने की स्थिति में बचे रहते हैं। उन्हें अलग करके नया उत्पाद तैयार किया जा सकता है। जैसे एक खराब मोबाइल फोन के कैमरा, माइक्रोफोन आदि फिर से काम लिए जा सकते हैं।
देश में रीसाइक्लिंग के काम को एक व्यवसाय के रूप में बढ़ावा दिया जाए तो इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और पर्यावरण सुरक्षा को लेकर भी यह मददगार साबित होगा।
(भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक लैब जर्नल प्रभात भारती में प्रकाशित)
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