खेती पर महंगाई की मार, डीजल की कीमतों ने किसानों की कमर तोड़ी, बुवाई में कर रहे हैं कमी

पिछले कुछ महीनों से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि ने किसानों को बदहाल कर दिया हैं। किसानों की खेती में लागत तीन गुना तक बढ़ गई है वहीं आमदनी में कुछ खास बढ़ोतरी नहीं हुई है। डीजल के साथ-साथ कृषि यंत्रों, खाद-बीज और कीटनाशकों  की कीमतें भी अपेक्षाकृत तेजी से बढ़ी है। बीते एक साल में डीजल की कीमतों में 26 से 27 रुपये तक की वृद्धि हुई है। इससे खेत की जुताई करना, सिंचाई करना और फसलों को निकालना किसानों के लिए बहुत महँगा हो गया है। 

खेत जोतना हुआ महँगा:

जिन किसानों के पास अपना ट्रैक्टर नहीं है उनके लिए खेत की जुताई करना बड़ी मुसीबत बन गई है। ट्रैक्टर मालिकों का कहना है कि उनके ट्रैक्टर से जो किसान अपने खेत की जुताई करवाते हैं उसका भाड़ा ज्यादातर किसान फसल निकलने के बाद देते हैं। इसलिए उन्हें डीजल के पैसे भी एक बार तो अपनी ही जेब से देने पड़ते हैं। अब डीजल इतना महँगा हो गया है कि वे किसी और के खेत की जुताई के लिए अपनी जेब से पैसे नहीं लगाना चाहते। क्योंकि फसल का कोई भरोसा नहीं है कि वह कैसी निकलेगी।

अमरपुरा गाँव के निवासी सांवलाराम ने बताया कि "चार-पाँच साल पहले जब डीजल की कीमत 55-60₹ प्रति लीटर थी तो ट्रैक्टर से जुताई के लिए कल्टीवेटर के 400 से 500₹ प्रति घण्टा और रोटावेटर के 700 से 900₹ लगते थे वहीं अब जबकि डीजल की कीमत 92-97₹ प्रति लीटर तक पहुँच गई है तो कल्टीवेटर से जुताई के 600 से 700₹ प्रति घण्टा और रोटावेटर के लिए 1200 से 1500₹ रूपये देने पड़ रहे हैं। तो वहीं फसलों को निकालने के लिए थ्रेसर के पहले 800 से 900₹ प्रतिघंटा के हिसाब से लगते थे अब यह 1200₹ प्रतिघंटा तक बढ़ गया है।" 

इतना ही नहीं फसल निकलने के बाद मंडी तक ले जाने का किराया जहाँ पहले 25-30₹ प्रति बोरी के हिसाब से देना पड़ता था वह अब बढ़कर 70-80₹ प्रति बोरी हो गया है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक डीजल पूरे बाजार में महँगाई को प्रभावित करता है। यह एक ऐसा अवयव हैं जिसकी कीमत बढ़ने पर सभी चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। इसका हर चीज में इस्तेमाल होता है। जब डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी तो ट्रैक्टर से जुताई करना, सिंचाई करना, मंडी तक जाने-आने का किराया और खाद-बीज आदि भी महँगे हो जाते हैं। इससे खेती की लागत तो बढ़नी ही है।

बिजली कटौती भी बड़ी समस्या:

दूर-दराज के गाँवों में बिजली कटौती भी आम बात है जिससे किसान जुते हुए खेत को भी समय पर पानी नहीं दे पाते इसलिए मजबूरन उन्हें डीजल इंजन से सिंचाई करनी पड़ती है जो अब बहुत महँगा सौदा साबित हो रहा है। हालांकि बिजली की दरों में भी पिछले पाँच सालों में डेढ़ गुना तक वृद्धि हुई है लेकिन अभी तक यह डीजल इंजन की तुलना में काफी सस्ता है।

बटाईदार की आमदनी दिहाड़ी मजदूर से भी कम:

युवा कृषक राजू सुथार ने बताया कि "एक बटाईदार की साल भर की कमाई किसी दिहाड़ी मजदूर से भी कम होती है। इसलिए बटाईदार हर साल इस उम्मीद में अपने लिए नया भूमिहार ढूँढ़ते हैं कि उन्हें वहाँ अच्छी फसल मिलेगी लेकिन उन्हें इतना ही मिलता है कि गुजारा भी मुश्किल से हो पाता है।"

अपने पिछले बटाईदार पूराराम की कहानी सुनाते हुए राजू कहते हैं कि "पिछली रबी की सीजन में उसने हमारी छह बीघा जमीन पर जीरे की फसल बंटाई पर ली। चार महीने कड़ाके की ठंड में दिन-रात एक करके काम करने पर भी उसे केवल तीन क्विंटल जीरा ही मिल पाया जिसकी कीमत 30 से 35₹ हजार तक होती है। इतने में कोई आदमी एक साल तक अपना परिवार कैसे चला पाएगा।"

पेशे से शिक्षक देवीलाल जांगिड़ का कहना है कि "क्षेत्र में इस साल पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण सूखे जैसी स्थिति रही और खरीफ की फसल भी अच्छी नहीं हुई। इससे किसानों के सामने खाद्यान और पशुओं के लिए चारे का संकट पैदा हो गया है।"

छोटे किसानों की पहुँच से बाहर हुए बीज-उर्वरक:

बीज और उर्वरकों की कीमतों में भी तेजी से उछाल आया है। खाद-बीज विक्रेता दिनकर पालेसा ने बताया कि "एक साल में यूरिया की कीमत में 50-80₹ प्रति बोरी एवं डीएपी में 400-600₹ प्रति बोरी तक बढ़ोतरी हुई है। हाइब्रिड बीज पर भी किसानों को ज्यादा रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इससे खाद-बीज की बिक्री में भी कमी हुई है। जो किसान बाजार से बीज नहीं खरीद पाते हैं, वे घर पर मौजूद पुरानी फसल से ही उपचारित करके बीज तैयार करते हैं जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।" 

हालांकि किसानों की सहकारी समितियों से मिलने वाली खाद पर सरकार द्वारा सब्सिडी भी दी जाती है लेकिन यहाँ अक्सर स्टॉक की कमी रहती है। किसानों को कई दिन तक चक्कर लगाने के बाद भी आवश्यकता के अनुसार खाद नहीं मिल पाती है इसलिए मजबूरन किसानों को बाजार से उर्वरक खरीदने पड़ते हैं।

पिछले सालों में टिड्डी दल के हमलों से भी किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। महँगाई की चौतरफा मार के कारण छोटे और गरीब किसान अपनी ही जमीन पर खेती करने में सक्षम नहीं है। 

स्थानीय किसान संगठनों का कहना है कि किसानों की स्थिति में सुधार के लिए सरकार की ओर से किए प्रभाव नाकाफी है। उनकी माँग है कि उन्हें मिलने वाले सरकारी अनुदान में वृद्धि की जाए और मंडी में फसल का उचित दाम भी मिले।

(भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक लैब जर्नल 'प्रभात भारती' में प्रकाशित। नवम्बर 2021 की रिपोर्ट)

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